MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

अध्याय - 2

दुर्खीम की बौद्धिक पृष्ठभूमि

(Durkhim's Intellectual Background)

 

प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।

उत्तर -

ज्ञान का समाजशास्त्र - ज्ञान का समाजशास्त्र मानवीय विचारों तथा सामाजिक तत्वों के बीच सम्बन्ध का अध्ययन है, जो इनके मध्य उत्पन्न होते हैं यह समाजशास्त्र की किसी विशेष शाखा से सम्बन्धित न होकर उन सभी क्षेत्रों की व्याख्या करता है जो सामाजिक व पृथक् व्यक्तियों के जीवन तथा सामाजिक तथ्यों से जुड़े हुए हैं यह उन सभी विचारों एवं तथ्यों की प्रारम्भिक अवस्था को दर्शाता है। ज्ञान का समाजशास्त्र का प्रारम्भ 1920 में माना जाता है।

सर्वप्रथम ज्ञान का समाजशास्त्र प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ईमिल-दुर्खीम और मार्शल मऊस द्वारा प्रस्तुत किया था। 19वीं शताब्दी के अन्त में। उनका कार्य सम्पूर्ण रूप से भाषा व तार्किकता के सिद्धान्त पर आधारित था दुर्खीम के अनुसार, 'सामाजिक तथ्य व्यवहार (विचार), अनुभव या क्रिया का वह पक्ष है जिसका निरीक्षण वस्तुनिष्ठ रूप में सम्भव हैं और जो व्यक्ति को एक विशेष ढंग से व्यवहार करने को बाध्य करता है।

दुर्खीम के अनुसार विवेचना

बाह्मता (Exteriority) - सामाजिक तथ्य की सर्वप्रथम उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमें बाह्यता का गुण निहित होता है। बाह्यता का अर्थ यह है कि सामाजिक घटनाओं या तथ्यों का निर्माण तो समाज के सदस्यों द्वारा ही होता है किन्तु सामोजिक तथ्य एक बार विकसित हो जाने के पश्चात् फिर किसी एक व्यक्ति विशेष का नहीं रहता और वह इस अर्थ में कि इसे एक स्वतन्त्र वास्तविकता के रूप में अनुभव किया जाता है अर्थात् वैज्ञानिक (व्यक्ति) का उससे कोई आन्तरिक सम्बन्ध नहीं होता और न ही इस पर किसी भी व्यक्ति-विशेष की क्रिया का प्रभाव ही पड़ता है।

एक अन्य रूप में भी सामाजिक तथ्य की बाह्यता को समझाया जा सकता है। मोटे रूप में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की अवधारणा को वैयक्तिक चेतना और सामाजिक या सामूहिक चेतना के अन्तर या भेद पर आधारित किया है। दुर्बीम के अनुसार, यदि हम वैयक्तिक चेतना के स्वरूप और संगठन का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि वैयक्तिक चेतना का मूल आधार संवेदनाएँ हैं। संवेदनाएँ विभिन्न स्नायुकोषों अन्तःक्रिया का ही प्रतिफल है। परन्तु विभिन्न कोषों द्वारा उत्पन्न होने वाली संवेदनाओं की अपनी विशेषताएँ होती हैं जो संगठन अथवा उत्पत्ति के पूर्व स्नायुकोषों में से किसी में भी विद्यमान नहीं थी। सम्मिश्रण से एक नवीन वस्तु का जन्म होता है। इस सिद्धान्त को दुर्खीम ने 'Synthesis and Suigeneris' कहा है अर्थात् प्रसार और संयोग की क्रिया द्वारा तत्वों का रूप ही परिवर्तित हो जाता है। ये संवेदनाएँ पुनः सम्मिलित और संगठन से व्यक्ति के विचारों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। सम्मिलन और संगठित होकर प्रतिभाओं को जन्म देती हैं। प्रतिभाओं के सम्मिलन और संगठन की यह प्रक्रिया इस समय तक वैयक्तिक रहती है, क्योंकि व्यक्ति का शारीरिक स्नायुमण्डल की विभिन्न अंगों को सम्मिलित और संगठित करता है। इस सीमा पर यह शक्ति (वैयक्तिक चेतना) विचारों का रूप ग्रहण कर लेती है। भाषा व संकेत ही मानवीय विचारों की इस संगठनकारी शक्ति का प्रसार करते हैं और वह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक स्थानान्तरित होती है। इस स्तर पर विभिन्न वैयक्तिक चेतनाओं के सम्मिलन और संगठन से एक नवीन चेतना का निर्माण होता है। यही नवीन चेतना सामाजिक या सामूहिक चेतना है।

दुर्खीम का मत है कि जिस प्रकार वैयक्तिक विचारों का मूलभूत आधार स्नायुमण्डल के विभिन्न कोष हैं, उसी प्रकार सामाजिक विचारों का मूल आधार समाज में सम्मिलित व्यक्ति होते हैं। सामूहिक चेतना का विकास वैयक्तिक चेतना के सम्मिलन तथा संगठन से होता है अथवा यह भी कहा  जा सकता है कि वैयक्ति विचारों का जब संगठन होता है तो एक नए प्रकार के विचार 'सामूहिक विचार' का विकास होता है जिसकी अपनी विशेषताएँ होती हैं। दुर्खीम का कहना है कि सामूहिक विचार की उत्पत्ति विस्तृत और ठोस सहयोग पर आधारित है। इस सहयोग का विस्तार स्थान में नहीं, समय में भी फैला है अर्थात् सामूहिक विचारों की उत्पत्ति सीमित स्थानों के कुछ इने-गिने व्यक्तियों से ही नहीं अपितु अनेक व्यक्तियों के सहयोग से हुई है, जिन्होंने पारस्परिक सहयोग द्वारा अपने विचारों और भावनाओं को संग्रहीत किया है; अनेक पीढ़ियों ने अपने ज्ञान और अनुभव को एकत्रित किया है। अतः इन विचारों में एक विशेष प्रकार की बौद्धिक प्रक्रिया निहित है जो व्यक्ति की बौद्धिक प्रक्रिया से कहीं अधिक पूर्ण और विशम है।

वास्तव में उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार, इस प्रकार विकसित विचारों का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। इनमें पारस्परिक आकर्षक और निषेध की शक्ति होती है। सामाजिक संगठन व पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर इनमें अनेक प्रकार के सम्मिलनों की शक्ति भी होती है। 'वास्तव में ये सामूहिक विचार व्यक्ति की परिधि से स्वतंत्र अपनी सत्ता रखते हैं।' उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के योग से एक नवीन वस्तु 'पानी' का निर्माण हो जाता है। पानी की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, जोकि न ऑक्सीजन में है और न हाइड्रोजन में। साधारण भौतिक विधियों द्वारा पानी को विभाजित करके ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को पृथक नहीं किया जा सकता है। उसी प्रकार विभिन्न व्यक्तियों की चेतना के विशेष संगठन और योग से जब नवीन सामूहिक चेतना का विकास हो जाता है तो उसे पुनः विभाजित करके व्यक्तियों की चेतनाएँ नहीं प्राप्त की जा सकती हैं।

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि किस रूप में सामाजिक तथ्य वैयक्तिक चेतना से परे या उसके बाहर एक अद्वितीय वास्तविकता है। दुर्खीम ने सदैव ही इस बात पर बल दिया कि जिस प्रकार विज्ञान अनेक मस्तिष्कों के सहयोग का प्रतिफल है और किसी एक व्यक्ति की मानसिक क्षमता व शक्ति से महान् है, उसी प्रकार सामाजिक तथ्यों का निर्माण भी विभिन्न वैयक्तिक विचारों के सहयोग से अवश्य होता है, परन्तु वे व्यक्ति से परे, पूर्ण व महान होते हैं। अपने इन विचारों को सिद्ध करने के लिए दुर्खीम ने चार प्रमुख युक्तियों को प्रस्तुत किया है। जिनकी विवेचना निम्नलिखित रूप में की जा सकती है।

(क) वैयक्तिक मस्तिष्क तथा सामूहिक मस्तिष्क की अवस्थाओं में भिन्नता (Different State of Individual and Collective Mind) - सामाजिक तथ्य व्यक्ति से बाहर होते हैं, इस बात की पुष्टि में दुर्खीम की प्रथम युक्ति यह है कि वैयक्तिक मस्तिष्क तथा सामूहिक मस्तिष्क की अवस्थाओं में भिन्नता पाई जाती है। एक समूह अपने सदस्यों (सदस्यों से पृथक् होने की स्थिति में) की अपेक्षा भिन्न ढंग से विचार करता, कार्य करता और अनुभव करता है। दूसरे शब्दों में, समूह के विचार करने का ढंग व्यक्तिगत विचार के ढंग से कहीं अलग होता है। दुर्खीम ने लिखा है कि व्यक्तियों के मस्तिष्क एकसाथ सम्मिलित होकर एक नए तरह के 'मस्तिष्क' या 'मानसिक सत्ता' को जन्म देते हैं। इस नवीन सामूहिक मस्तिष्क के विचार व्यक्ति-विशेष के विचारों से सर्वथा भिन्न होते हैं।

(ख) व्यक्तिगत और सामूहिक परिस्थिति में व्यक्ति के मनोभावों व व्यवहारों में भिन्नता (Difference in Individual's Attiudes and Behaviours while in personal and in Ground situations) - दूसरी प्रकार की युक्ति, जोकि दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों की बाह्यता को स्पष्ट करने के सम्बन्ध में दी है, यह है कि सामूहिक परिस्थिति में व्यक्ति के मनोभाव और व्यवहारों में अनिवार्य रूप में भिन्नता आ जाती है। दूसरे शब्दों में, सामूहिक परिस्थितियों में व्यक्ति के मनोभाव और व्यवहार उस प्रकार के नहीं रहते जिस प्रकार वह व्यक्तिगत रूप में सोचता या व्यवहार करता है। उदाहरणार्थ, एक भीड़ में एक व्यक्ति पृथक् रीति से सोचता, अनुभव करता और कार्य करता है। दुर्खीम का कहना हैं कि चूँकि सामाजिक तथ्य हमें बाहर से प्रभावित करते हैं। अतः हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं कर पाते; बल्कि समाज जैसा चाहता है वैसा ही करते हैं। अतः स्पष्ट है कि सामाजिक तथ्य की स्वतन्त्रता सत्ता है अर्थात् उसमें बाह्यता का गुण विद्यमान है।

(ग) सामाजिक घटनाओं के आँकड़ों की समानता (Uniforomity in the Statistics of Social Phenomena) - सामाजिक तथ्य की बाह्यता के सम्बन्ध में दुर्खीम ने एक अन्य प्रमाण सामाजिक घटनाओं के आँकड़ों की समानताओं के आधार पर दिया है। अनेक प्रकार के सामाजिक तथ्य जैसे अपराध, विवाह, आत्महत्या आदि के आँकड़ों में प्रतिवर्ष एक आश्चर्यजक एकरूपता दिखाई देती है। इन आँकड़ों में या तो कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता या उनमें परिवर्तन की गति एक-सी रहती है। इस प्रकार की एकरूपता व्यक्तियों के मनोभावों अथवा उनकी विशेषताओं के आधार पर प्राप्त नहीं की जा सकती।

(घ) प्राणिशास्त्रीय समानता (Biological Analogy)- सामाजिक तथ्य की बाह्यता के सम्बन्ध में दुर्खीम ने एक अन्य युक्ति यह दी है कि समाज में अनेक प्राणिशास्त्रीय समानताएँ पाई जाती हैं। आपका विचार कि शरीर की व्याख्या पृथक् रूप में कोष्ठ या वाहकाणु के आधार पर नही की जा सकती और यदि शरीर के सम्बन्ध में वास्तविक जानकारी करनी है तो समस्त कोष्ठों, वाहकाणुओं आदि की सम्मिलित रूप में विवेचना करनी होगी। यद्यपि शरीर का निर्माण इन कोष्ठों को मिलाकर ही होता है, परन्तु शरीर इन कोष्ठों से बिल्कुल भिन्न तथा इनसे पूर्णतया स्वतन्त्र है। इसी प्रकार समाज के निर्माण में भी व्यक्ति एक कोष्ठ के समान है और इसीलिए कोष्ठ की भाँति ही वह समाज के अधीन होता है।

2. बाध्यता (Constraint) - सामाजिक तथ्य की दूसरी प्रमुख विशेषता उसकी बाध्यता है।

दूसरे शब्दों में, सामाजिक तथ्यों का व्यक्ति पर बाध्यतामूलक प्रभाव पड़ता है। वास्तव में व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उस पर सामाजिक तथ्य का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है और वह इस रूप में कि सामाजिक तथ्यों का निर्माण समाज के किसी एक सदस्य के द्वारा नहीं होता है बल्कि इसमें अनेक सदस्यों का योगदान होता है। इसीलिए ये अत्यन्त शक्तिशाली होती हैं और किसी भी व्यक्तिगत व्यवहार का इनका बाध्यतामूलक प्रभाव पड़ता है। दुर्खीम का मत है कि सामाजिक तथ्य केवल व्यक्ति के व्यवहार को ही नहीं, बल्कि उसके सोचने, विचारने आदि के तरीके को भी गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं। आपके अनुसार, सामाजिक तथ्य में बाध्यता अथवा दबाव डालने का यह गुण इस रूप में देखा जा सकता है कि ये सामाजिक तथ्य व्यक्ति की अभिरुचि के अनुरूप नहीं, बल्कि वे स्वयं व्यक्ति पर बदाव डालते हैं और उसके व्यवहार व अभिरुचियों तक को नियन्त्रित व निर्देशित करते हैं।

दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों में 'सामाजिक दबाव या बाध्यता' की इस विशेषता को समझाने के लिए अनेक उदाहरणों को प्रस्तुत किया है। आपके अनुसार समाज में प्रचलित अनेक सामाजिक तथ्य जैसे नैतिक नियम, धार्मिक विश्वास, वित्तीय व्यवस्थाएँ आदि सभी मनुष्य के व्यवहार व कार्य करने के तरीकों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।

सामाजिक तथ्य की 'बाध्यता' नामक विशेषता को एक अन्य रूप में समझाया जा सकता है। जैसाकि पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि सामाजिक तथ्य सामूहिक चेतना की श्रेणी में आता है और सामूहिक चेतना वैयक्तिक चेतना का सर्वोत्कृष्ट रूप है क्योंकि 'सामूहिक चेतना वैयक्तिक चेतनाओं के अस्तित्व और विशेषताओं की समष्टि चेतना है; यह चेतनाओं की चेतना हे। इस कारण सामूहिक चेतना सामूहिक रूप में उस शक्ति की अधिकारिणी होती है जोकि वैयक्तिक इच्छा को सामूहिक इच्छा के सम्मुख झुका देती है। व्यक्ति उन शक्तियों के अनुरूप विचार करता है, अनुभव करता और निर्णय लेता है जिनके सम्मुख उसे झुकाना पड़ता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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